मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | समाज एक से अधिक लोगों के समुदायों से मिलकर बना एक समूह है | समाज के लोग आपस में भौगोलिक
सीमाओं, भाषा, विचारों, भावनाओं, रिश्तों-नातों इत्यादि सम्बन्धों से जुड़े होते हैं | मानव का इन सम्बन्धों के प्रति कुछ कर्तव्य एवं दायित्व बनते हैं,
जिसका निर्वहन उसके द्वारा अपेक्षित होता है | मनुष्य का अपने सामाजिक जीवन के कुछ दायित्व निम्नलिखित हो सकते हैं -
1. अपने प्रति दायित्व
2. माता, पिता के प्रति दायित्व
3. परिवार के प्रति दायित्व
4. समाज के प्रति दायित्व
5. राष्ट्र के प्रति दायित्व
अपने प्रति दायित्व निर्वहन का आशय है व्यक्ति के स्व के विकास का | प्रत्येक व्यक्ति को अपने विकास पर ध्यान देना चाहिए | अपने विकास में व्यक्ति के शारीरिक,
मानसिक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक विकास सम्मिलित हैं | इन गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही अपने अन्य सभी दायित्वों का सफलता पूर्वक एवं कुशलता पूर्वक
निर्वहन कर सकता है |
व्यक्ति को अपने दायित्व को भली प्रकार समझना चाहिए एवं उसके अनुरूप सोच-समझ कर कार्य करना चाहिए |
"बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय | काम बिगारे आपनों, जग में होत हसाय ||" महाकवि गिरधरदास जी की इन पंक्तियों का तात्पर्य है कि बिना
सोचे-समझे कार्य करने वाला व्यक्ति अपना तो कार्य बिगाड़ता ही है, साथ ही साथ समाज में हँसी का पात्र बन भी जाता है | इस सन्दर्भ में बचपन में सुनी एक
कहानी साझा कर रहा हूँ-
एक नगर में एक पण्डित जी रहते थे | वह बहुत ही सज्जन एवं धर्मनिष्ठ थे | उनका मानना था कि सभी जीवों में परमात्मा का निवास है | वे प्रतिदिन प्रातः
पूजा-पाठ करने के उपरान्त अन्त में शंख बजाया करते | उनके शंख की ध्वनि सुनकर पड़ोसी का गधा रेंकने लगता | पण्डित जी सोचते कि सम्भवतः यह पूर्व जन्म
में अवश्य ही कोई भगवदभक्त रहा होगा, जो शंख की ध्वनि सुनकर आनन्दित हो उसके सुर में सुर मिला कर रेंकने लगता है | इसी तरह दिन बीतते रहे | एक दिन
पण्डित जी ने जब शंख बजाया, गधे के रेंकने की आवाज नहीं आयी | पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि गधा उसी दिन मर गया है | पण्डित जी को दुःख हुआ | पण्डित जी
को वह गधा पूर्व जन्म का भगवदभक्त प्रतीत होता था, इसलिए उसके मृत्यु के उपलक्ष्य में पण्डित जी ने उसका तर्पण किया और मुंडन कराया | शाम को पण्डित जी
बगल के एक दुकानदार के पास सामान लेने गये | पण्डित जी को देखकर दुकानदार मुंडन का कारण पूछा | पण्डित जी बोले "क्या बताऊँ, आज शंखराज नहीं रहे" |
दुकानदार सोचा कि शंखराज निश्चय ही कोई बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति रहा होगा और उसने भी मुंडन करा लिया | अब दुकानदार के द्वारा यह जानकारी क्षेत्र
के कुछ सम्मानित व्यक्तियों को मिली, जो उसके ग्राहक थे, तो उन्होंने भी मुंडन करा लिया, और यह देख कारण को जाने बिना मुंडन का दौर चल पड़ा | सूचना
नगर प्रमुख तक पहुंची तो उसने घटना के तह तक जाने का निर्णय किया | पता करते-करते जब पण्डित जी के पास तक पहुँचा तो पता चला कि शंखराज कोई
महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं, बल्कि पडोसी का गधा था |
इस तरह बिना सोचे-समझे और विचार किये कार्य करने पर व्यक्ति इसी तरह हँसी का पात्र बन जाता है | इस तरह हमारा यह दायित्व बनता है कि हम किसी भी सूचना की
सत्यता, सार्थकता एवं समाज के लिए उसकी उपयोगिता पर विचार करने के उपरान्त ही उसे फैलने एवं फ़ैलाने में सहयोग करें, अन्यथा हम अपने और
अपने समाज को हानि पहुँचा सकते है |
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